स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ......................
मानस की एक एक चौपाई हमें व्यावहारिक ज्ञान देती है, वास्तव में आदर्श व्यवहार कैसा हो इसका प्रायोगिक उदाहरण मानस में सर्वत्र मिलता है ! कुछ उदाहरण प्रस्तुत है -
अ) गुरु शिष्य का सम्मत व्यवहार (उत्तर कांड)
ब) ज्ञान व शक्ति के अभिमान से उत्पन्न समस्या (गरुड़ कागभुशुंडी संवाद)
स) भाई का भाई के साथ व्यवहार सामान्य एवं संकट की परिस्थिति में (राम भरत, राम लक्ष्मण, कुम्भकर्ण विभिसण)
द) पति पत्नी के सम्बन्ध में आदर्श एवं सम्मान
उपरोक्त सभी हमारे व्यवहार की वस्तुए हैं, यदि हम इनसे थोड़ी सी भी शिक्षा अपने व्यव्हार में ला सके तो जीवन अवश्य सुखमय होगा ! अंत में प्रभु की अनुकम्पा --
"सब जानत प्रभु प्रभुता सोई, तदपि कहे बिनु रहा न कोई !"